4 अप्रैल 2014

ये उम्मीद तो नहीं

बहुत नज़दीक थे
एक तुम थे एक हम थे ,
बस वही करीबी हौसला थी ,
ये कभी भी फ़ासलेमे तबदील न होगी  …
बस शायद मशरूफ होते चले गये ,
शायद तुम्हारे वजूद को भूलते चले गए ,
बस अपनी राह पर बढ़ते चले गए ,
रुके तो तुम साथ न थे  …
याद आये वो एक एक लम्हे वादों के ,
पर साथ और हाथ छूटा वो पता न चला ,
न तुम हरजाई हो ,न हम बेवफ़ा !!!
फिर ये दूरियाँ ????
बस वापस आ रहे है ,
लौट रहे है वहाँ पर ,
शायद तुम  लौटो ये उम्मीद तो नहीं ,
फिर भी तुम्हारा इंतज़ार करने को मन करता है  …!!!!

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