23 सितंबर 2013

मशरूफियत

बहुत मशरूफियत होगी तुम्हें   भी ,
पता नहीं याद आ रहे होंगे जो वादे किये !!!
आज फिर खिड़कीके बाहर वही नज़ारे ,
सूरजने आज रात बिखेरनी कोशिशें की ,
तुमने देखी क्या ??
रातने अपने निशाँ छोड़े है ,
दिन के पल्लू पर ,तुमने देखे क्या ??
आज वही बारिशें रूप बदल बदल कर बरसी है ,
पर वो रूमानियत की हवाएं न चली ,
शायद तुमने महसूस की हो !!!???
लगा बड़े से रेगिस्तान में खड़ा शायद
रास्ता हम तक आने का तलाशता रहा है दिन ,
और बादलों की भूलभुलैयामें गुमशुदा हो गया ,
तुम दूर हो , पर आज बादलों पर
तुम्हारे लिखे खतों पर से स्याही फ़ैल गयी सी ,
सारे अल्फाज़ बह बह कर गिर गए मेरे दामनमें ,
चलो अब उन्हें सहेज लूँ दोबारा ,
तुम्हारा वो पैगाम पढने की कोशिश कर लूँ ,
आज खो गया है दिन जो उसकी राह उजागर कर लूँ ,
जरा यादोकी मोमबत्ती जला लूँ !!!!!
रात भी थक चुकी है ज्यादा चलकर दिन भर ,
आज उसे भी लोरी गा कर सुला दूँ !!!!
बस आज यूँही तुम बहुत याद आये ,
इश्क न बरसा आसमान से ,
फिर भी तुम्हे भरकर गया है मेरी साँसोमे ...

1 टिप्पणी:

  1. आज बादलों पर
    तुम्हारे लिखे खतों पर से स्याही फ़ैल गयी सी ,
    सारे अल्फाज़ बह बह कर गिर गए मेरे दामनमें ,
    चलो अब उन्हें सहेज लूँ दोबारा ,
    तुम्हारा वो पैगाम पढने की कोशिश कर लूँ ,
    बहुत सुन्दर...

    अनु

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