7 नवंबर 2012

टिप टिप टिप...

खुद से खफा खफा से है हम ,
और दुनिया क्यों खुश नज़र आ रही है ????
या तो शामिल हो जाओ इस नज़ारेमें ,
या फिर अपनी आँखों को बंद कर लो .....
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हम तो बैठे थे यूँ ही तन्हाईमें राह के किनारे पर ,
बस ये कमबख्त हवाएं थी जो जुल्फ उड़ाकर चली गयी ....
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बिखरे गेसू की उल्ज़ीसी लटोंमें
रात चाँद एक नज़्म लिख गया होगा !!!!!
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सितारोंको सुना है हर पता तुम्हारा पता था ,
पर नाराज़ थे वो मुझसे भी रास्ता भटका दिया .....
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चाँदके अश्क गिर रहे थे टिप टिप टिप ,
रात के खुले हुए गेसू भीगते चले गए .......

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