आप संवेदनशील हो ??? अगर हो तो भी और न हो तो भी एक फिल्म बर्फी जरुर देखिये ...इसे देखने के कई कारण है ..सबसे पहला तो दार्जिलिंगकी खूबसुरतीके लिए ...मैंने खुद दार्जिलिंग देखा है इस लिए शायद फिर मुझे ये फिल्म वहां पर ले गयी ...
दूसरा देखो रणबीर कपूरकी एक्टिंग के लिए ...एक बहरे और गूंगे युवककी भावनाओको कितनी खुबसूरत तरीके से वाचा मिल गयी है इस फिल्म के जरिये ..वो ही जज्बात जो हर जवान दिलमें पहले प्यार के लिए होते है उसे अभिव्यक्त करने की एक खुबसूरत वजह ....इलियाना दिक्रुज ..कितनी सक्षम अभिव्यक्तिसे गुजरती हुई !!! ...और इस फिल्म का सबसे बड़ा आश्चर्य तो है प्रियंका चोप्रा झिलमिलके रोलमें जो ओटीझमसे पीड़ित है ...कहीं पर भी लगा नहीं की ये एक्टिंग है !! इतना खुबसूरत तरीकेसे उसने उस केरेक्टर को जिया है !!!!दिलमे अमिट छाप छोड़ जायेगी .....दिल टूटना और फिर दिल जुड़ना बिना कोई ताली पीटने वाले संवादके बगैर भी संभव है ..इसका सक्षम प्रमाण है ये फिल्म .....
प्रियंका चोपरा तो बस दिल पर पत्थर पर खिंची एक तस्वीर की तरह बस गई ....फिल्म आंसू नहीं बहाती पर एक सोच छोड़कर चली जाती है ....
= प्यार कितना सरल होता है पर हमने हमारी बोजिल अपेक्षाओंसे कितना मुश्किल और कहो तो कोम्प्लिकेट कर दिया है ....दो अधूरे इंसानका प्यार कितना पूरा होता है पर दो सम्पूर्ण इंसानों का प्यार क्यों अधुरा रह जाता है ....प्यारमें कोई अपेक्षा नहीं होती ..वो तो हमेशा सरल ही होता है करना भी ,पाना भी और जीना भी ...तो हम जब उसे दिमाग से करते है जहाँ पर ये दिल से होना चाहिए .......
इसे फिल्म की तरह नहीं एक दिलकी धड़कन को साथ लिए जी लो ...शायद आपको आपके कोई सवालका जवाब मिल जाए ...........
ये फिल्म नहीं सेल्युलोइड पर लिखी फिल्माई गई एक कविता है .......
ये फिल्म ओस्करके लिए नोमिनेट हुई है ...पर एक इन्सानका दिल इस फिल्म के अंतमें एक छोटा सा अश्रुबिंद जो एक संतोष का होगा ये ओस्कार तो दे ही देगा ....
सेल्यूट टू अनुराग बासु ....रणबीर कपूर और एक जादू की जप्पी प्रियंका चोपरा के लिए .......
दूसरा देखो रणबीर कपूरकी एक्टिंग के लिए ...एक बहरे और गूंगे युवककी भावनाओको कितनी खुबसूरत तरीके से वाचा मिल गयी है इस फिल्म के जरिये ..वो ही जज्बात जो हर जवान दिलमें पहले प्यार के लिए होते है उसे अभिव्यक्त करने की एक खुबसूरत वजह ....इलियाना दिक्रुज ..कितनी सक्षम अभिव्यक्तिसे गुजरती हुई !!! ...और इस फिल्म का सबसे बड़ा आश्चर्य तो है प्रियंका चोप्रा झिलमिलके रोलमें जो ओटीझमसे पीड़ित है ...कहीं पर भी लगा नहीं की ये एक्टिंग है !! इतना खुबसूरत तरीकेसे उसने उस केरेक्टर को जिया है !!!!दिलमे अमिट छाप छोड़ जायेगी .....दिल टूटना और फिर दिल जुड़ना बिना कोई ताली पीटने वाले संवादके बगैर भी संभव है ..इसका सक्षम प्रमाण है ये फिल्म .....
प्रियंका चोपरा तो बस दिल पर पत्थर पर खिंची एक तस्वीर की तरह बस गई ....फिल्म आंसू नहीं बहाती पर एक सोच छोड़कर चली जाती है ....
= प्यार कितना सरल होता है पर हमने हमारी बोजिल अपेक्षाओंसे कितना मुश्किल और कहो तो कोम्प्लिकेट कर दिया है ....दो अधूरे इंसानका प्यार कितना पूरा होता है पर दो सम्पूर्ण इंसानों का प्यार क्यों अधुरा रह जाता है ....प्यारमें कोई अपेक्षा नहीं होती ..वो तो हमेशा सरल ही होता है करना भी ,पाना भी और जीना भी ...तो हम जब उसे दिमाग से करते है जहाँ पर ये दिल से होना चाहिए .......
इसे फिल्म की तरह नहीं एक दिलकी धड़कन को साथ लिए जी लो ...शायद आपको आपके कोई सवालका जवाब मिल जाए ...........
ये फिल्म नहीं सेल्युलोइड पर लिखी फिल्माई गई एक कविता है .......
ये फिल्म ओस्करके लिए नोमिनेट हुई है ...पर एक इन्सानका दिल इस फिल्म के अंतमें एक छोटा सा अश्रुबिंद जो एक संतोष का होगा ये ओस्कार तो दे ही देगा ....
सेल्यूट टू अनुराग बासु ....रणबीर कपूर और एक जादू की जप्पी प्रियंका चोपरा के लिए .......
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