आज हमसे एक जुर्रत हो गयी है ,
नज़रके चश्मोंसे नज़र खुद की ही हथेली पर चली गयी है ,
टेढ़ी मेढ़ी रेखाओके बीच एक पूरा साबुत चाँद नज़र आया है ...
हर एक रैना सपनोका टोकरा लेकर आती है
खिड़कीसे मुझे एक आवाज लगाती है ...
और अल्फाजोंके खिलौनोंसे खेलते हुए हम
कागज़के पर्दों वाली खिड़कीको खोल देते है ...
बरस रही है आसमानोंके पहलुसे अल्हडसी बुँदे बेबाक ,
अपनी हथेलीमें लेकर उसमे कागज़ी कश्ती उतारते है ....
सफ़ेद पैजामे पर चलते चलते राह पर कीचड़के दाग ,
बारिशके प्रेमपत्र बनकर लिख जाते है ....
चलो अब बादलोंके पंख पर सवार उस आसमान पर चलते है ,
रूठकर मुंह फुलाकर बैठ गया है जो चाँद बादलके पीछे जाकर
चलो उसे फिर थोडा थोडा गुदगुदाते है .....
नज़रके चश्मोंसे नज़र खुद की ही हथेली पर चली गयी है ,
टेढ़ी मेढ़ी रेखाओके बीच एक पूरा साबुत चाँद नज़र आया है ...
हर एक रैना सपनोका टोकरा लेकर आती है
खिड़कीसे मुझे एक आवाज लगाती है ...
और अल्फाजोंके खिलौनोंसे खेलते हुए हम
कागज़के पर्दों वाली खिड़कीको खोल देते है ...
बरस रही है आसमानोंके पहलुसे अल्हडसी बुँदे बेबाक ,
अपनी हथेलीमें लेकर उसमे कागज़ी कश्ती उतारते है ....
सफ़ेद पैजामे पर चलते चलते राह पर कीचड़के दाग ,
बारिशके प्रेमपत्र बनकर लिख जाते है ....
चलो अब बादलोंके पंख पर सवार उस आसमान पर चलते है ,
रूठकर मुंह फुलाकर बैठ गया है जो चाँद बादलके पीछे जाकर
चलो उसे फिर थोडा थोडा गुदगुदाते है .....
बादलों के पंख , कागज के पंखों वाली खिड़की , अलफ़ाज़ के खिलौने .
जवाब देंहटाएंबेहतरीन बिम्ब कविता में रोमांचित करते हैं !
वाह बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंचाँद को गुदगुदी तो वो खिलखिलाया....
देखो तुम्हारे आँगन का हरसिंगार कैसे घास पर बिखर आया....
:-)
अनु