आज वक्तको पंख बांधकर उड़ाना है जल्दी जल्दी ... बस इंतज़ार है की वो वक्त वो घडी मेरे सामने आ जाए अभी अभी ...पर वक्त की अपनी रफ़्तार है ...जो अभी मुझे जरुरतसे ज्यादा धीमी लग रही है .....
एक लम्बे अरसे के बाद मैं मेरी जन्मभूमि पर जा रही हूँ ...सिर्फ दो घंटेभर का रास्ता है पर ये दूरी तय करने में मुझे शायद तेईस साल लग गए ...एक्का दुक्का जाना हुआ पर उसकी गलियोंमें घुमने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हो पाया ...उसे नजदीकसे देखने का महसूस करने का वक्त नहीं था ...पर इस वक्त मुझे वक्त छिनना है ...वक्तके हाथो से ....मुझे मेरी जन्मभूमि को बदला हुआ देखना है ....
उस मिटटी पर मेरी पहली सांस थी जहाँ पर एक कुत्ते पर सस्सा चढ़ आया था और बादशाहने शहर बसाया था ...हाँ अहमदाबाद .....बहुत जल्द चार पुरे दिनका वक्त बटोर कर सिर्फ घुमने के लिए ..एक बंजारे की तरह घुमने के लिए ...कंधे पर जोला लटकाकर , उसकी बसोंमें घूमते हुए शहर को देखने ....
बहुत सी यादें है वहां की मेरे जहनमें ...पर मैं और मेरी दोस्त ....गर वो मशरूफ रही तो अकेले ही ....
बस ...मैं और मेरी तन्हाई अक्सर ये बातें करते है ..एक छोटा सा सपना सच हो जाए तो !!!!!
बिलकुल सच होगा.....सुन्दर अभिव्यक्ति....
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