उम्मीदोंके दायरे बहुत बड़े होते है ,
एक मुठ्ठी उसे कब तक समां पायेगी ???
टिप टिप करते हुए कभी
उम्मीद एक बूंद बनकर हथेलीसे टपक जायेगी !!!
खाली मुठ्ठी होती है कहाँ कभी
ढेर सारे सपने भरे रहते है उसमे ...
एक सपना बर्फसा जमकर चिपक जाता है ,
और पिघलता है कभी हथेलीकी तपिशमें
तो फिर बूंद बूंद बन पिघल जाता है ....
वो उम्मीद और वो बूंद
जो शायद हयात होती है एक पलके लिए ,
फिर भी उसके सहारे जीवन सारा
एक एक पल करके गुजरता रहता है ,
एक पल एक बूंद एक उम्मीद ........
उम्मीद की बेहतरीन अभिवयक्ति.....
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