एक दिन तन्हाई भीड़में चलने निकली ,
हर तरफ विचारोंके काफिले चल रहे थे ....
कोई अकेला उसकी तरह था ,
तो कोई दुसरेसे जुड़कर चला था ,
कोई किसीका हाथ थामकर चल पड़े ,
तो कोई अकेले अकेले आमके पेड़ तले खड़ा था ...
कोई चिड़ियाकी चहकसे महक रहा था ,
कोई गुमसुम बरबस बेबस खड़ा था ...
किसीकी आँखमें ख़ुशी छलक रही थी ,
कोई अश्क छुपानेकी कोशिशमें लगा था ....
इस भीड़में भी हर कोई किसीकी तलाशमें था ,
हर कोई किसीके साथ होते हुए भी साथ न था ....
और कोई कोई अकेला होते हुए भी किसीके साथ था ....
तन्हाई मुसकरा दी चुपके से ,
लगा उसे एक पल के लिए वो आयनेके सामने तो नहीं खड़ी ?????
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें