आज मनके समंदरमें सपनोकी सीपियाँ चुनी ,
कुछ खाली खाली सी निकली ,
कुछ में मोती मिले ,
कुछ सीपीमें हवाएं कैद थी ,
और कुछ सीपी सपनोको कैद करके बैठी थी ....
उन्हें नदीके किनारे छोड़कर वापस आ गयी ,
ये सीपी जो सजावट और शृंगार है
एक नदी का एक समुन्दरका
वो उनके बिना अधूरे से ,
जिसकी नियामत थी
उसे सौपने का सुकून भी मेरा ही तो चैन था ......
सुंदर अभिव्यक्ति..
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