11 अक्तूबर 2011

क्योंकि ये रात शरद पूर्णिमाकी है ....

चाँद शरमा रहा होगा आज ,
चांदनीका हाथ थामे वो जब आएगा ,
नज़र टिक जायेगी इस दुनियाकी उस पर ...
कैसे करेगा गुफ्तगू वो सितारोंसे 
कैसे पढ़ेगा वो हर नज़्म 
जो उसने रातके दामन पर लिखी है हिजरके आलममे 
तीस दिन के बाद आती है ये रात 
जब चाँद पुरे शबाब पर होता है ...
और आज चाँद गुजारिश करेगा 
एय इंसान मुझे भी तुम्हारी तरह इश्क हुआ है ,
तुम्हारी तरह मैं भी तारीफ करना चाहूँगा 
मेरी महबूबा रात आज सारे सितारे ओढ़ आएगी ,
बस दो पल मुंह उधर कर लेना ....
जब वो मेरे दामन पर छोटे से ये दाग को चूमेगी .....
क्योंकि ये रात शरद पूर्णिमाकी है ....
मेरे संग तुम्हारे चलने की है ...
पलकें उठाकर रात जब होठ खोल देगी ,
बस हर प्रेमीकी आरजू शायद वही बोल देगी ....
शर्माकर चिलमनसे चाँदके हर राज़ खोल देगी ....
बस एक पल अपना चेहरा उधर कर लो ...
आज मुझे भी चांदनी ओढ़कर बैठी रात को देखना है रात भर ....

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