एक बूंद एक अल्फाज़ ...
एक प्रवाह जब एक पंक्ति बहे कलमसे ,
क्या कहूँगी कविता को ???
एक नदी ,एक झरना या एक सागर
सारी अनुभूतियोंका सैलाब खुदमें समेटे जो ???
मैं बहने लगती हूँ कलमके जरिये
फिर भी कुछ अटकता है दिलकी दहलीज पर आकर
एक पल लगता है की सब कुछ बह तो गया ...
फिर आँखे मूंदकर देखती हूँ तो
भीतर अभी भी एक सागर उमड़ रहा है .....
मैं जिन्दा हूँ इसका एहसास तो है ,
फिर भी जैसे क्यों लगता है ,
खुद का जनाजा खुदके कंधो पर लादकर
कारवां जिसमे कोई नहीं मेरे सिवा
कौनसी मंजिलके और जा रहा है ....
जिंदगी किस खोज में है .....
जवाब दुनियासे कहाँ मिलेगा ???
खुद के भीतरमें है ...निगाहें देखती है भले दुनिया
बस खुदमें एक नज़र तो नहीं ??!!!
खुद के भीतरमें है ...निगाहें देखती है भले दुनिया
जवाब देंहटाएंबस खुदमें एक नज़र तो नहीं ??!!!सुन्दर रचना.....
behreen rachna...
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