2 अक्टूबर 2011

मैं एक दिनके लिए गाँधी बन जाऊं ...

आज गाँधी फिर दुनियाकी सैर को आये है ,
मैं एक दिनके लिए गाँधी बन जाऊं ...
कैसे जीते होंगे वो उस बात का एहसास कर लूँ ....
खूब बुरी भली कही थी उसने मुझको
सो न पाया उस गलत इलज़ामसे मैं  कल रात ...
आज मुझे वो कह रहे है एक शुभ प्रभात ....
एक सच बोला .....
मुझे तुम्हारी सूरतसे भी नफ़रत है ,
है तू  सेठका साला इस लिए तो बोस है .....
शाम को .....
इस्तीफा लिखवा लिया सेठने मुझसे 
ऐसा हश्र हुआ , क्यों की मैं सच बोला ........
बीवीने बोला था शाम पिताजी से मिल आना .
फिर सच बोला ...
न मैं तुम्हारे पिताजीसे मिलने जा पाया ,
आज तो मैं दुसरे शो में पिक्चर देखकर आया .....
अब ....
बीवी रूठकर बैठी है शाम खाना नहीं मिला ...
देखो सच बोलने का एक परिणाम मुझे मिला ....
माँ के ऐनक टूट गए थे कई बार याद दिलवाया था ,
कल सुबह मैं पैसे लेकर तो गया था ....
बीवीकी सालगिरह पर उसके लिए साडी लेकर आया था ....
अब .....
माने मुझे जोरू का गुलाम बताया ...
माँ के पास तो और तीन ऐनक थे ,
बीवी के लिए तो पांच साल के बाद नयी साडी ला पाया था .....
लगता है कल इस गाँधी को खुदसे बिदा कर दूंगा ...
ये छोटीसी दुनियाके लिए फिर सफ़ेद जूठ बोलता जाऊँगा ....
क्योंकि  मैं गाँधी नहीं , मैं एक प्रवर्तमान राजनेता भी नहीं ...
मैं तो हूँ एक अदना इंसान जो छोटी ख़ुशीके लिए जूठ बोल रहा .......

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