कहीं दूर जानेकी चाहत है
पर कदम रुक रहे है यूँ कुछ ...
डर नहीं अनजान राहोंका फिर भी
राह पर चलते अनजान फ़ासलोंका ख्याल है ......
मुझे काफिलोंकी चाहत नहीं है ,
बस एक हमसफ़र ही काफी है ....
चुपचाप चलते हुए ...
बस जहाँ साँसोंकी आवाज सुनाई दे
वो ख़ामोशी की सदा है ....
पंछियोंके परवाजों की भी आहट सुनने की ख्वाहिश है ...
पत्तीकी सरसराहट भी नज़्म बनकर
लिख जाए एक दास्ताँ राह पर ....
वो राह पर लिखी दास्ताँ राहबर बन जाए ....
आज शायद तनहा हो जो भी
कल उनके लिए हमसफ़र बन जाए ....
एक कदम ...एक आरजू..एक कशिश .......
एक दूर चले जाने की ख्वाहिश .......
अब ये दुनिया की महफ़िलसे दूर ....
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