कलमकी नोक पर रुके है शब्द ...
आज निशब्द है .....
बस आँखें स्तब्ध होकर देख रही है सब कुछ ....
वो चिंगारी दबी हुई जो शोला बनकर उमड़ पड़ी है अवाममें ....
ये हिम्मत जो जगी है ॥
बस उस शोले को आग में पलटते देख
आज ख़ुशी है ...
आज भी अन्याय के खिलाफ
हमारा खूनमें उबाल आया है ,
हम एक है ,
हम सड़कोको इंसानोंसे भर सकते है ....
फिर कहने को दिल करा ....
हाँ हम सब भारतीय है .....
आपने बहुत अच्छी बात कही है .. वाकई आज एक नयी लढाई कि जरुरत है .. अच्छे लफ्ज़. बधाई .
जवाब देंहटाएंआभार
विजय
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कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html