कांचके बादलसे उड़ती हुई खिड़कियाँ ,
बूंदोंसे अपनी हयातको भिगोती खिड़कियाँ ,
एक एक बूंद लिखती रही कहानी सफ़ेद स्याही से ,
पढ़ती रही चुपचाप वो अफ़साने
जो टिप टिप टिप बूंद सुनाती रही ,
एक एक बूंद तनहासी ,
एक एक बूंद प्यासीसी ,
एक एक बूंद तलाशमे
उस बदराकी जो उसे दुल्हन की तरह
बादलकी डोलीमें उडा जाए .......
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