26 जुलाई 2011

ख़ामोशी बस ख़ामोशी ...

हम खामोश है और रहेंगे


क्योंकि हम रुसवा नहीं कर सकते


अपनी जुबाँसे आपको ,


गिले शिकवे तो हर दोस्तीका उसूल है ,


पर आपकी अच्छाईसे दोस्ती हमारी रोशन थी ,


आज भी आपकी यादें साथ है हमारे ,


हम खुदकी नज़रमें गिरे कैसे ?


गर तुम्हारे खिलाफ लब्ज़ निकाला


तो वो रुसवाई हमारे विश्वास की है ......


तुम खफा सही मुझसे नजदीक नहीं ,


गर तुम्हारी नफ़रतमें है वो दम


ले जाओ तुम्हारी यादोंको मेरे दिलसे निकालकर ,


वो भी तुम्हारे साथ आनेसे इनकार कर देगी ....

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