एक पगडण्डीकी राह पर
चलते चलते एक दिन
अचानक जिंदगी मिल गयी सारे राह ........
नंगे पांव चलते हुए
थोड़ीसी गर्द जमी हुई है ,
काँटोंसे थोड़े झख्म बन गए है ....
पर ध्यान चला जाता है उस फुल पर
जो हंस रहा है तितलियोंके साथ ....
दर्द छुप जाता है उस तितलीके लिबासमें
उड़ता फिरता है फुल की खुशबूके संग ......
कहाँ छुप गयी थी अब तक ???
अय जिंदगी .....
तुझे हर द्वारे पर ढूंढकर थक गए हम ,
जहाँ किश्तोंमें उधार पर भी मिलती थी .....
और अब पाया है तुझे सुनसान गली में
यूँ तनहा सी हँसते हुए ....
रख ले मुझे अपने दामनमें छुपाकर ...
बस इतनी सी तो इल्तजा है .....
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