वक्त के सितमको क्या कहें ???
हसीं ख्वाब दिखाकर छोड़ जाता है ,
हम दो राहे पर खड़े उसके इंतज़ारके लम्होंको
सहजते हुए बस इतना ही कहते है ,
कब लौटोगे ???
कहाँ पर मिलोगे ???
कैसा रूप होगा तुम्हारा रूप ???
तुम मुझे कैसे पहचानोगे ??
बस सवाल पर सवाल लिखते चले जाते है हम ,
और वक्त चुपके से जवाब लिखकर चला जाता है जिंदगीकी किताब पर ......
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