शायद एक पयगाम आ जाए उनसे ,
उस ख्वाहिशमें निगाहें तकती रही राहको दिनभर ,
बारिश घने बादलोंसे रो रही थी ,
उन्होंने दस्तक दी दरवाजे पर रूबरू ...........
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एक कुचले हुए कागज़ परसे बह रहे थे जजबात ,
अल्फाज़के आंसूको पोंछने के लिए खोला कागज़ ,
उम्मीदे किसीसे बांधी थी बिना कोई शर्त किये ,
शायद इसी लिए उसे कुचल कर फेंकी गयी थी .........
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ना राहोंमें ना चाहोंमें कहीं ना मिल पाए मुझे मेरे अल्फाज़ ,
वो तो मेरे घरके दरीचों पर बैठे मेरा इंतज़ार कर रहे थे .......
जिंदगी मेरे लिए ख्वाबोंके बादल पर उड़नेवाली परी है .!! जो हर पल को जोड़ते हुए बनती है, और उन हर पलोंमें छुपी एक जिंदगी होती है ....
11 जून 2011
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