1 मई 2011

खिड़की खुली

ख़ामोशीकी सदा कुछ बोल पड़ी ,
खोली सुबहमें जब बंद खिड़की मेरी ,
मेरी हँसी खिल पड़ी ,
वो घर जो मेरा है ,
वहां मेरी आँखे खुली है फिर से ,
फिरसे एक ताज़ा हवा के झोंकेके संग
मैं भी हौले हौले उड़ चली .....
बहुत कुछ दिल पर है लिखा ,
पर क्या करूँ अल्फाज़ मेरे खेल रहे है आज
मुझ संग आँख मिचोली ,
ठहरो थोड़ी देर आज तुम भी ...
उन्हें पकड़ कर मैं वापस लौटती हूँ ......

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