14 अप्रैल 2011

आलसीपनका खुबसूरत समां

कभी कभी यूँ ही लगा की
चलो चलो आज यूँही बैठे रहे ,
कोई सुध नहीं ,कोई सोच नहीं ,
नहीं किसीका ख्याल ,
बस सामने नीले गगनको रंग बदलते देखें ,
सूरजको और गर्म होते हुए देखे ,
पंछीको आशियाँ बनाते देखे ,
पेड़ की छाँवमें बैठी
गैया को जुगाली करते देखे ,
नलमें एक एक बूंद टपकाते हुए
कांच के गिलासको भरते देखे ,
चींटीकी कतारमें बातें करती
दो चींटीकी चाल देखे ,
एक मक्खीको चीनीके गिरे दानों पर भिनभिनाते देखे ,
आँखे बंद करके एक आनेवाले सपने को देखे ,
बस एक बार आयनेमें खुदका बचपन देखे ......

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