कभी कभी यूँ ही लगा की
चलो चलो आज यूँही बैठे रहे ,
कोई सुध नहीं ,कोई सोच नहीं ,
नहीं किसीका ख्याल ,
बस सामने नीले गगनको रंग बदलते देखें ,
सूरजको और गर्म होते हुए देखे ,
पंछीको आशियाँ बनाते देखे ,
पेड़ की छाँवमें बैठी
गैया को जुगाली करते देखे ,
नलमें एक एक बूंद टपकाते हुए
कांच के गिलासको भरते देखे ,
चींटीकी कतारमें बातें करती
दो चींटीकी चाल देखे ,
एक मक्खीको चीनीके गिरे दानों पर भिनभिनाते देखे ,
आँखे बंद करके एक आनेवाले सपने को देखे ,
बस एक बार आयनेमें खुदका बचपन देखे ......
जिंदगी मेरे लिए ख्वाबोंके बादल पर उड़नेवाली परी है .!! जो हर पल को जोड़ते हुए बनती है, और उन हर पलोंमें छुपी एक जिंदगी होती है ....
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
विशिष्ट पोस्ट
मैं यशोमी हूँ बस यशोमी ...!!!!!
आज एक ऐसी कहानी प्रस्तुत करने जा रही हूँ जो लिखना मेरे लिए अपने आपको ही चेलेंज बन गया था । चाह कर के भी मैं एक रोमांटिक कहानी लिख नहीं पायी ...

-
अब हम जा रहे है अपने इस भ्रमणके तीसरे पड़ाव की ओर .... जैसे की आपसे मैंने पहले भी बताया था की मेरी सबसे पसंदीदा जगह है ऋषिकेश हरिद्वारसे तकर...
-
खिड़की से झांका तो गीली सड़क नजर आई , बादलकी कालिमा थोड़ी सी कम नजर आई। गौरसे देखा उस बड़े दरख़्त को आईना बनाकर, कोमल शिशुसी बूंदों की बौछा...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें