ना तो कुछ बताकर आती है ,जब आती है दबे पाँव आती है ,
वो नाच है खौफनाक मौतकी जब वो धरती फाड़कर आती है ......
जलके तरंगो पर सवार होकर हर लहर तबाही को लेकर किनारे आया ,
ये ताकतवर इंसान को सिर्फ बेबस और लाचार बनाकर जाती है ....
एहसास हो गया अब की जो तरक्की के सामान जुटाए थे हमने ,
वही हमारी कब्र की तरह खुलते हुए नज़र आये है .......
हर उंचाई पर ठहरा हुआ वो इंसान पलमें ही जमीं पर आ जाता है ,
जिसे कहते है जलजला कहर बनकर वो धरती को हिलाकर जाता है .....
संभल जा ए आदमी ,अब तो जी और जीने दो की कसम खाले ,
ये दुनिया बनी है जीने के लिए उसे कब्रस्तान होने से बचा ले .......
हर जनम के साथ एक पौधा उगा ले ,हर मृतकी याद में एक पेड़ लगा दे ,
हवाई जहाजमें बेवजह उड़ना छोड़ दे दोस्त ,
सायकलसे अपना दोस्ताना बढा दे .....
पोलीथिनकी बेग में अपनी मौत को मत सजा दोस्त ,
कभी कपडेकी थैली में अपना सामान उठा ले ......
आने वाली मौत को नहीं टाल सकते देर हो चुकी है ,
जिंदगी राह को इस तरह थोड़ी दूर तक लम्बी बना दे ........
जिंदगी मेरे लिए ख्वाबोंके बादल पर उड़नेवाली परी है .!! जो हर पल को जोड़ते हुए बनती है, और उन हर पलोंमें छुपी एक जिंदगी होती है ....
14 मार्च 2011
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