11 मार्च 2011

संतृप्त सा ....

आज आयनेमें सुबह देखा ,
सिर्फ एहसास दिखे चंद अल्फाज़ लिए थे ,
शरमाते ,अंगडाई लेते ,मुस्कुराते ,खिलखिलाते
बाहें फैलाये खड़े थे सामने मेरे ,
छूकर देखा उन्हें हौलेसे ,
छुईमुई से सिमट गए ....
ऊँगली से स्पर्श किया तो गरमा गए ,
पसीनेसे तर हो रहे थे ....
ना सुबह की ऑस छलक रही थी अल्फाजोंके चेहरे पर ,
उस बूंद को सहज कर एक पयमानेमें ,
पी लिया ...
फिर उन्हें देखा
तो उनके चेहरे पर थी एक आभा
संतृप्ति की ....

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