4 मार्च 2011

जिंदगी का घर ...

रिश्ते जिंदगीसे जुडी होते है
या जिंदगी रिश्तोसे बनती है ???
एक सवाल सोचते हुए हम कहीं दूर निकल गए थे ....
रस्तेमें प्यास लगी तो मटका याद आ गया ...
मटके के साथ रसोई और वो जहाँ थी वो घर याद आया ....
भूख लगी तो रोटी याद आई और उसके साथ चूल्हा याद आया ....
थक गए चारपाई याद आई और उसके साथ आँगन याद आया ....
हाँ एक घर है मेरा बहुत याद आया ...
घर में वो माँ याद आई , वो पिताजी याद आ गए ....
वो स्कुल ,वो दोस्त ,वो भाई बहन ,वो मास्टरजी भी याद आये ....
घर पर ताला होता था तब बिठाकर पानी देनी वाली पड़ोस की चाची याद आई ....
नहीं अब जाकर यकीं आ गया
रिश्तों से जुडती जिंदगी ही जिंदगी बनती है ...
वर्ना सहरा की तपती धुप और अनंत महासागर को देखो ...
सिर्फ वहां रेत ही रेत नज़र आती है ....

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