20 फ़रवरी 2011

सुबह में चाँदसे मिलना मेरा ..

एक बड़ी सुबह ,
रोशनी हलकी हलकी सी ,
अँधेरे के दामन को पकडे हुए ,
चली आ रही थी हौले हौले ....
हम चल पड़े इस शीतसुबहमें सैर को ,
घर से निकल देखा ,
चाँद एक पेड़ की टहनी पर पैर टिकाये इंतज़ारमें था मेरे ,
श्वेत चाँद इंतज़ार की थकावटसे पिला पड़ गया था ....
चाँद की तश्तरीमें मुझे मोहब्बत दिख गयी ,
ऐतबार था उसमे मेरे आने का ....
फिर क्या ???!!!
बस चाँद को सामने रखे हुए हम सीधी सड़क पर चलते रहे ,
चाँद कहता रहा ,मैं सुनती रही ,
चाँद घने पेड़ के पीछे छुपता रहा ,
मैं उसे तेज चलते हुए ढूंढती रही ....
चाँद मुस्कुरा रहा था ,
मैं हंस पड़ी ....
फिर एक लम्बी सैर पर चाँद ने मेरे गाल को सहलाया ,
और कह रहा था ,
आज का साथ बस इतना ही ,
फिर मिलेंगे ....तुम हम ...हम तुम .....
कई लोग मेरे साथ चल रहे थे सड़क पर ,
पर उस चाँद को सब अनदेखा करते चलते रहे ,
सारे राह इश्क फ़रमाया चाँद से हमने ,
फिर भी दुनिया की नज़र से बचे ही रहे ....
क्यों ???
दुनिया चाँद पर पहुँचने में लगी रही है ,
पर चाँद को आँगन में देखने की फुर्सत नहीं .....

5 टिप्‍पणियां:

  1. दुनिया चाँद पर पहुँचने में लगी रही है ,
    पर चाँद को आँगन में देखने की फुर्सत नहीं .....
    the end was superb....keep on writing....

    Jai Ho Mangalmay ho

    जवाब देंहटाएं
  2. पर चाँद को आँगन में देखने की फुर्सत नहीं .....

    वाह !..कभी कभी लोगों की व्यस्तता भी लाभदायक सिद्ध हो जाती है ।
    बढ़िया प्रस्तुति ।
    बधाई ।

    जवाब देंहटाएं
  3. दुनिया चाँद पर पहुँचने में लगी हुई है , आँगन के चाँद को देखने की फुर्सत नहीं ...
    तंज़ अच्छा है ...विकसित होते हम लोग प्रकृति के सौंदर्य से दूर होते जा रहे है !

    जवाब देंहटाएं

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