14 जनवरी 2011

पतंगने कहा ...

कहती है पतंग क्या ?
कट जानेके डर से क्या उड़ना छोड़ दें
ऊँचे उड़ना हो तो खुद को दुनियादारीसे बोजसे भारी मत बना दो ,
मेरी तरह कागज़ के बन जाओ हलके फुलसे बन जाओ .....
शरीर में चर्बी और मनमें दुःख ,कलेश ,राग द्वेष जो पालोगे
एय इंसान तुम कभी जमीं से ऊपर ना उठ पाओगे ....
अपना मक़ाम जो ऊपर उठाना है तुझे ,
संकल्प की डोर से खुद को बांध ले ......
आदर्शसे जब पेच लड़ जाए ,
तो कटनेसे भी मत डर .....
तेरी राह जरूर बदल जाए शायद ,
पर खुद को बदलना नहीं ...
बिजली के तार मिले या पेड़ मिले राहों में ,
बिन हवा के उड़ना पड़े ये तेज हवा के झोंकोमें
अपनी गति अपना रूख तु हवासा करता चल ,
मत पलट अपनी राहोसे ,
या आकाश माप ले या फिर कटता चल .........

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

विशिष्ट पोस्ट

मैं यशोमी हूँ बस यशोमी ...!!!!!

आज एक ऐसी कहानी प्रस्तुत करने जा रही हूँ जो लिखना मेरे लिए अपने आपको ही चेलेंज बन गया था । चाह कर के भी मैं एक रोमांटिक कहानी लिख नहीं पायी ...