9 जनवरी 2011

तेरी उम्मीद ....

निर्या दीपा की दोस्त है ,थी और रहेगी .....
बचपनमें साथ बढे और पले स्कुल कोलेज साथ साथ रहा ...दोस्ताना वो जिसमे हर अदा शामिल ...प्यार झगडा ,रूठना मनाना ....दोनों बीस साल की हुई तब दीपा अमेरिका चली गयी ....शादी के वक्त एक ख़त मिला था ....फिर कोई सुराग नहीं ...बस जहनमें बहुत सारे खुबसूरत लम्हे रख छोड़े थे ....
निर्या रोज फेसबुक पर उसे ढूंढती थी ...पर वो नहीं मिल रही थी .....ऑरकुट भी छान लिया ...कोई मतलब नहीं ...उसके शहर भी जाकर आई क्योंकि निर्या शादी के बाद दिल्ही में सेटल हुई थी ....पुराने शहरमें बहुत सारी यादें उसकी दीवार दरिचो में कैद थी बिलकुल अनछुई सी ...उस पर कोई धुल या जंग नहीं लगी थी ...शायद ये प्रमाण था की उसकी यादें भी इसी शिद्दत से ताज़ा थी ...ये दिल की गवाही थी .....वो कोलेज गयी ...वहां पर एक अध्यापक मिले श्री समीर श्रीवास्तव ....उनके साथ पढ़ते थे और चार साल पहले अमेरिका से लौटे थे ....
अनायास इतने सालों के बाद एक उम्मीद जागी ...समीरने कहा की दीपा अब जर्मनी में है ...और उसके तलाक हो चुके है ...उसकी बेटी के साथ सेट है ....समीर के पास उसका जर्मनी का पता मिला ....
दिल्ही लौटकर निर्या ने पहला काम उसे ख़त लिखने का किया ....लेकिन एहसास जम गए थे ...सिर्फ आंसू बह रहे थे ...उसने रोते हुए इल्तजा की दीपा ये ख़त मिले तो कमसे कम उसे जवाब जरूर दे ........
एक महीने तक उसने पोस्टमन की राह देखी ...एक दिन बहुप्रतीक्षित ख़त आया ...दीपा का ही था ....
ख़तकी लिफाफा फाड़कर खोलते हुए तक तो निर्या के हाथ पाँव कांप रहे थे ........आंसू को कई बार पोछना पड़ा क्योंकि की अक्षर धुंधला रहे थे ...अंत में एक ईमेल एड्रेस भी लिखा था और फोन नंबर भी ....
निर्या की तलाश पूरी हुई थी ....अब हफ्ते में एक फोन और दो दिनोमे चेट का सिलसिला शुरू हुआ ...पुरानी यादें ताज़ा होती रही ....और एक दिन सुबह में निर्या की डोर बेल बजी और सामने दीपा थी .......
दो बिछड़े गले लगकर कुछ भी बिना कहे कई मिनटों तक बहुत कुछ कह गए जब तक निर्याके पति देव ने उन्हें फिर जागरूक नहीं किया ......बहुत सारी बातों का ढेर ...खूब सारा घूमना ...शोपिंग के बाद दोनों ने तय किया की वापस अपने पुराने शहर अहमदाबाद जाय ...एकेले दोनों ही ....
एक एक जगह खुद को जाकर ढूँढा ....वही पुरानी मानिक चोक की पानी पूरी और एच एल कोलेज का कम्पाउंड में जाकर भी एक घंटा बैठे ...वो कांकरिया तालाब ....सब कुछ बदला था फिर भी इस शहर के इतिहास के अनजाने सफे पर उनकी दोस्ती की दास्तान भी बरक़रार थी ....
निर्या ने कहा दीपा से अब तुम भी कोई सोशिअल नेटवर्क साईट पर आ जाओ ....दिल का हाल बयां करेंगे .....
उस पर दीपा का जवाब था ::: वो बेकरारी कहाँ जो दोस्ती को इतनी गहरी बनाये ????हाले दिल जो रोजमर्रा बयां किये जाए तो उनमे वो कसक नहीं बच पाती जो हम दोनों के बीच आज भी बरक़रार है ....अरे मेरा हाले दिल मुझे गर तुमसे बयां किया है वो पूरी दुनिया से कहने की मैं कोई जरूरत नहीं समजती ....क्योंकि तुम्हारे ख़त मिलना वो पल ...उसके लिए तो शब्द अधूरे होते है ...फोन पर तुम्हारी आवाज ...जैसे लगता था तुम मेरे से कभी दूर नहीं हो ...वो विडिओ चेट ......दूरी नहीं रही ...पर आज जब हम इतने सालों के बाद मिले है वो शिद्दत शायद कोई जरिये में नहीं होगी .....मैं तुम्हे ऐसा ही पाना चाहती हूँ .....
किसी की फुरकत को महसूस कर
प्यार और बढेगा गर दिलमें कशिश है ....
जो कल पुर्जों से बयां किया जाए ....
उस प्यार पर कैसे यकीं कर ले ???????
बस अगले मिलन के वादे पर दोनों देखते रहे एक दुसरे को ....दीपा प्लेन की खिड़की से और निर्या विजिटर लोंज के अहाते से .....
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शायद दीपा सच कह रही थी ....जिस तक पहुँच ना पाए ऐसी दोस्ती एक अनजान से
वो उस कशिश को हासिल नहीं कर सकती जो गुजारे साथ पलों की यादों में समायी है ...
एक तस्वीरमें तेरी हथेली की गरमाहट कैसे महसूस कर पाएंगे ?
जो तुझे गले मिलने पर तेरा हाथ मेरे हाथमे लेते वक्त एहसास बन गयी थी ???????

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