5 जनवरी 2011

गुस्ताख चाँद

रातों की स्याही सिमटकर कलमसे बहने को बेताब थी
पर ये चाँद बड़ा गुस्ताख हो गया आज
अपना सफ़ेद दामन का सफा समेट कर छुप गया
कहने लगा आज अमावस है मुझे ढूंढ लो ......
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तुम्हारे हाथो की नरमी
तुम्हारे साँसों की गर्मी ...
ये गर्म शालो में लिपटा सुर्ख चेहरा
बता रहा है की देखो जाड़े के दिन चल रहे है .....

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