28 अक्तूबर 2010

कुछ टुटा टुटा सा

कुछ टुटा टुटा आज सुबह में पैर में चुभा
एक सपना था ........
कांच का था शायद ....
तीखा नुकीला ..नुकीला ....
खून ना बहा ....
आंसू निकले आँखसे .....
खारे खारे सागर के पानी से ...
जिसने कभी ना प्यास बुझाई मेरी ....

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