कुछ टुटा टुटा आज सुबह में पैर में चुभा
एक सपना था ........
कांच का था शायद ....
तीखा नुकीला ..नुकीला ....
खून ना बहा ....
आंसू निकले आँखसे .....
खारे खारे सागर के पानी से ...
जिसने कभी ना प्यास बुझाई मेरी ....
जिंदगी मेरे लिए ख्वाबोंके बादल पर उड़नेवाली परी है .!! जो हर पल को जोड़ते हुए बनती है, और उन हर पलोंमें छुपी एक जिंदगी होती है ....
28 अक्तूबर 2010
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