27 अक्तूबर 2010

क्यों ? क्यों ??क्यों ???

तुम्हे क्या कहूँ ?
तुम कभी मेरे ना थे ,
तुम्हे भी कोई हक़ नहीं बक्शा मैंने ,
क्योंकि मैं तुम्हारी ना कोई ........
फिर भी बार बार सामना हो जाता है
कोई पहचान होने का अंदेसा हो जाता है ,
वो तस्वीर दिल की दीवारोंसे फाड़ कर जलाकर
राख तक दफन कर दी थी जमींमें ....
फिर भी आँखें बंद करने पर उभर आती है .....
क्यों ?
क्यों ??
क्यों ???
जो दिल से बना रिश्ता होता है
ना आग जला सकती है ,
ना पानी बहा सकता है ,
ना जमीं दफना सकती है ,
एक कशिश को कसक भी बनाकर
कसक को भी प्यार का नाम देकर
प्यार के नाम दो सुनहरे पल जी लिए जाय .....

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