26 अक्तूबर 2010

लौट आया पहला प्यार .....

लौट आया पहला प्यार .....
चलो उसकी उंगली थामकर भाग जाते है कहीं दूर .....
जहाँ भीड़ ना हो तनहाई हो
कोई अपना ना लगे ,अजनबी बस अंदाज़ हो .....
एक कोने के पेड़ के नीचे बैठ पंछीका अनसुना गीत सुने ...
और नर्म मुलायम घास पर लेटे हुए
एक गहरी नींद आ जाए .....
ठंडी लहराती हवा मेरा दुपट्टा मेरे चेहरे को ढक जाए ....
एक ठंडी तनहाई ,जहाँ बस मैं और मैं ...मेरे पास ना कोई .....
उस गलियारेमें फोड़े पटाखेंकी बारूद की बास ताज़ा हो गयी ,
पैर के तलवे पर पड़े हुए बुझी हुई फुलजड़ी के वो छाले फिर ताज़ा लगे .....
आंगनकी रंगोली अभी जैसे बिखेर गया है कोई ,
अभी था जो ये रोशन दिया शायद अभी ही बुझा हो ....
एक मिठाई जो सिर्फ जहनमें खा सकते है
भाई बहनके साथ एक बट्टा चार खाई थी ....
पैर छूते हुए दादीमा की चवन्नी फिर याद आई है .....
उस अमीरी के पास आज ग़ुरबत लगे है खाली खाली
चलो भाग चले दूर दूर कहीं लौट आया है मेरा पहला प्यार ....
चलो इस दीवाली वो चाचाकी बेटीसे अचानक मिलने जाते है ,
वो पहली फुलजड़ीको फिर साथ बैठकर एक दिए से जलाते है ...

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

विशिष्ट पोस्ट

मैं यशोमी हूँ बस यशोमी ...!!!!!

आज एक ऐसी कहानी प्रस्तुत करने जा रही हूँ जो लिखना मेरे लिए अपने आपको ही चेलेंज बन गया था । चाह कर के भी मैं एक रोमांटिक कहानी लिख नहीं पायी ...