दिनके मंज़र पर रातका सवाल
खामोशसा खड़ा इंतज़ारमें है ,
वो चाँद आज किस रूपमें आएगा ???
पूरा खिला होगा या फिर रातके अँधेरे में छुप जाएगा ???
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सूखे पत्तेकी रगों में एक नज़्म मिली
एक दास्ताँ थी मोहब्बतकी बेजांसी
जिसमे महक इश्क की अभी भी बाकी थी ,
बस इक दीदार हो जाए तो वो हवाके साथ बह जाए ....!!!!
जिंदगी मेरे लिए ख्वाबोंके बादल पर उड़नेवाली परी है .!! जो हर पल को जोड़ते हुए बनती है, और उन हर पलोंमें छुपी एक जिंदगी होती है ....
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