10 सितंबर 2010

कुदरत

कल भगवान एक हाथ में केमेरा
और दुसरे हाथ में ढोलक लेकर बैठे हमरे शहरमें ...
बिजली चमकती रही और बादल गरजते रहे ,
छ घंटे में सौ दिन का पानी का स्टोक भर गये .....
हर गली हर नुक्कड़ भर गया जैसे कोई नदी की नहर हो .....
कारे गराज में खड़ी रही ,स्कूटर ने फ़रमाया आराम ,
पैदल चलके मजे किये और सायकिल के पहिये आये काम ....
इंसान का सब गुमान सर्वशक्तिमान होने का
पल में चूर चूर कर गया ....
कल कुदरत हमरे शहर को कुछ यूँ घायल कर गया .....

1 टिप्पणी:

  1. जो उपरवाला कुछ उदास हो जाए,
    न चमकाए कैमरा, न ढोलक बजाए ,
    तो भी तो सूखा पड़ जाए,
    आदमी की हस्ती ही क्या,
    शेखी ही बस बघीरे है,
    कुदरत के पास आदमी को
    सीधा करने के कई तरीके है ..

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