7 जून 2010

वो संदेस

दीवारोंके छेदसे जो किरणे आया करती थी ,

अंदाज वो दे जाया करती थी ,

चलो एक आगाज़ भी दिन का हो जाये

पर आज वो नहीं आई मुझे जगाने ,

चुपकेसे उसने पैगाम भेजा पहली बारिशकी धारा भेजकर ,

आजा तु भी नहा ले आज जी भरके गले मिलकर ...

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

विशिष्ट पोस्ट

मैं यशोमी हूँ बस यशोमी ...!!!!!

आज एक ऐसी कहानी प्रस्तुत करने जा रही हूँ जो लिखना मेरे लिए अपने आपको ही चेलेंज बन गया था । चाह कर के भी मैं एक रोमांटिक कहानी लिख नहीं पायी ...