रीझते झख्मोंसे लहू के कतरे
अरमानोके धागे पिरोकर
टीसके साथ चुभोकर सुइयां
सीते गए ....सीते गए हम .....
बीचमें रह गयी कुछ जगह यूँही ...
वहीँसे झख्म भरते गए ...
हाले दिल बीमारका है अच्छा
ये ही हर ख़तमें लिखते रहे हम ...
पर ये बावरे नयनोसे
धंसकर आ गयी ये बागी अश्ककी बूंद .....
लिखे थे जो सफे पर पिरोकर जज्बातोंको अल्फाजोंको
फैलाकर बहा ले गए ....
ना कहते हुए कुछ भी हाले दिल बयां करते गए .....
आये वो ...आखिरकार एक दिन वो भी लौट कर वापस आ गए .....
ठीक वक्त पर लौटना हुआ ....
थोड़ी और देर कर देते तो
शायद जनाजे पर आखरी फुल भी अदा ना कर पाते ...........
bhut khub
जवाब देंहटाएंshabdar
bhut khub
जवाब देंहटाएंshabdar