कुछ कहने को दिल करे और जुबान साथ ना दे
बस बंद पलक आँखों पर से उठने का नाम ना ले ,
दवात कागज़ पर स्याही छोड़ने का इनकार करने लगे
कांपते होठ बस यूँही सिल कर रह जाने लगे ,
कोई कुछ तो बता दे की ये दिलने खता कर दी है
इश्क करनेकी फिर भी इज़हारसे अब क्यों ये डरने लगे ????
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देखो ये कितनी सजा मुझे मिल गयी जिंदगी की ,
काफिर हूँ फिर भी जुबानसे निकले हर अल्फाज़ बंदगी के ......
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अजनबी चेहरे पर ठहर जाती है नज़र
तलाश फिर भी रह जाती है दीलमे कोई अपने की ...
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