सितारोंसे भरी एक शामका पयमाना था ...
रातको घूँट घूँट कर पी रहे थे हम ...
मदहोशी बढती चली जाता है हर पहरके हर घूँट पर
दिल से भी एक कसक एक आह बुझी शमा की
उठती लौ सी चली जाती है ....
वक्त बे वक्त इस समांमें बंधकर खिंची चली आती है
बदहवासीकी बेनूरी लिए याद उनकी ही ......
बस जिसको भूलने के लिए मयखाने का रूख कर लिया था हमने
हर घूँटमें शराबके उनकी याद घूँट घूँट कर उभरती जाती है .....
बस जिसको भूलने के लिए मयखाने का रूख कर लिया था हमने
जवाब देंहटाएंहर घूँटमें शराबके उनकी याद घूँट घूँट कर उभरती जाती है .....
wow !!!!!!!!!!!
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
सुन्दर प्रस्तुती यादों के कारवाँ की
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना!
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