आज मुझे मेरा आसमां मिल गया
मेरे ही घर की छत के तले
ना दीवारों की सरहद थी
सब आर पार बड़ा ही साफ़ .....
ना गर्द ना उठता हुआ धुएं का गुबार
बस पैर टिकने भरकी जमीं का एक टुकड़ा ...
आज मेरे घरके छत के तले आसमां पा लिया .......!!!!!
छितरे छितरे बादल बिखरे रुई के टुकड़ों से
मुंडेर पर सजा कर जाते है कोयल की कूके
नर्तन मयूरका था मन जो थिरक रहा था मेरा
पर ...पर ....
पता नहीं हया के पर्दों के पीछे कोई छिप रहा था ...
अब अब्र के पंख लिए
चाँद की जमीं पर
सितारों के दरीचे पर एक मेरा भी मकाम है ...
गौरसे देखो उस पर लिखा हुआ एक नाम है
वो नाम नहीं किसी और का किसी गैर का ॥
वो तो मेरा ही नाम है सिर्फ मेरा .....
गौरसे देखो उस पर लिखा हुआ एक नाम है
जवाब देंहटाएंवो नाम नहीं किसी और का किसी गैर का ॥
वो तो मेरा ही नाम है सिर्फ मेरा ....
....वह...वाह....वाह.......
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अति सुन्दर आपकी कविता अतुलनीय हे..आपके विचारो के सानिध्य मे रहने का सुवसर प्राप्त करने के लिये मॆने आपके ब्लाग का लिंक अपनी डायरी Ashu में दिया हॆ । धन्यवाद
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