इस डायरी का हर पन्ना एक दास्ताँ लिख लेता है ,
बंद करके अपने घूँघट को दिलमें उसे सिल लेता है ,
समय की गर्द जमा लेती है परते कई उस पर
ना उसे कोई घुटन होती है ना कोई गीला इस जहांसे .....
वो अपने हर लफ्ज़ हर सफेमें
एक दर्द को चुपके से सिसक लेता है
लेकिन फिर भी खुशियों को चुराकर इस जहाँ की हवाओंमें घोल लेता है ....
कोई गुस्ताख दिल एक दिन
बेअदबीसे पेश आ ही जाता है उस पर
गर्द को झाड़कर उसका घूँघट खोल
दुनियाके सामने उसकी नुमाईश कर देता है ....
वो अलग था
उसका बाहर अलग था
उसका भीतर अलग था
जो गूंजती थी हँसी उसकी फिजाओंमें
दर्द की छलनीसे छनछन कर आया करती थी
अब उसे लग रहा था
वो सरे बाज़ार लुट गया ......जिंदगी की पूंजी सा दर्द कोई लुट कर ले गया ...
"वो अपने हर लफ्ज़ हर सफेमें
जवाब देंहटाएंएक दर्द को चुपके से सिसक लेता है"
बहुत खूब लिखा आपने । दर्द को बखूबी ब्यान किया ।
बहुत सुन्दर भाव्………दर्द ही कोई लूट के ले जाये तो कोई कैसे जिये।
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत लेखनी है आपकी जो इतनी उम्दा रचनाये उकेरती है
जवाब देंहटाएंरामनवमी की बधाई हो
बहुत अच्छी कविता है। पसंद आई। इस तरह की रचनाओं का इंतजार रहेगा।
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण!
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