चल कहीं दूर निकल जाएँ .......
बहती हवाओंमें घुलकर मौसमका एक राग बन जाए ,
किसी बांसुरीकी तानमें खो जाएँ ,
बस इस रूह की पंखो पर बैठ दूर कहीं निकल जाए ....
राहोंमें मिलेंगे कई परिंदे उसके गान की तान पर
एक नया गीत लिख जाए ...
फिर एक बार उन गीतोंको हम मुस्कानोंमें भर जाए .....
धीरे धीरे हमें भी आ ही गया देखो यूँ खुल कर जीना इन पंछियों सा ,
कोयलकी कूक बन मन वीणा पर गीत गाते रहना .....
और देख काले घन पिहू पिहू कर मयूरसा
पंखोको ओढ़नी खोल कर जी भर भर के डोलना ...
चलो दिल आज इन्ही वादियोंमें गूम जाए ...
खुदके जिस्मसे आज़ाद हो ...
रूह के बल इन वादियों गूम जाएँ .....
कोयलकी कूक बन मन वीणा पर गीत गाते रहना .....
जवाब देंहटाएंऔर देख काले घन पिहू पिहू कर मयूरसा
SUNDER PANKTIYAA..
धीरे धीरे हमें भी आ ही गया देखो यूँ खुल कर जीना इन पंछियों सा ,... अति सुन्दर एवं आशावादी रचना ।
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