आज मेरी कलम यूँ बरबस रो पड़ी ...
कहने लगी मुआफ कर दो मुझे
तुम्हे कैसे बताऊँ मैं ?
तुम्हारे जज्बातों को बहला ना पाऊँगी अब मैं ...
तुम कहो जो वो सुन ना पाऊँगी मैं ...
कागज़ को खरोंचना यूँ गंवारा ना होगा मुझे ...
मेरे दिलके ज़ख्मोसे उसे यूँ कुरेद ना पाऊँगी मैं !!!!!
अपनी बेबसी लाचारी को तुम्हे भी ना समजा पाऊँगी मैं !!!!
इंतज़ार करना तुम मेरा यूँही , यहाँ पर ही ...
जब तक लौट ना पाऊं मैं !!!
तनहाईके आलममें फिर खुद को तलाश पाऊं मैं ......
तनहाईके आलममें फिर खुद को तलाश पाऊं मैं .nice
जवाब देंहटाएंकविता इतनी मार्मिक है कि सीधे दिल तक उतर आती है ।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत अंदाज में बेहतरीन रचना.
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