एक सहर एक कतरा एक जर्रा एक पयगाम लाया ,
तेरी यादमें तेरे आनेकी आह्ट भरसे महक गया है चमन ....
कैसे बयां करे धड़कनने भी दिलके दायरेसे बाहर आना चाहा ,
पलकें बोझिल हो रही थी शर्मोहयाके दामनमें सिमट रह गयी तनहा मैं ......
जुबान ख़ामोशीकी चादर ओढ़े सूखे होठो पर बैठ कांपने लगी ,
बस आकर तुने थामा मेरा हाथ अपने हाथमें लेकर मैं खड़ी गढ़ी पिघल गई एक शमा सी ...
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