28 जनवरी 2010

नज़र नज़र से

शब्द नि:शब्द थे

नज़र नज़र को ढूंढ रही थी

जिसका नज़रको था इंतज़ार आखिर वो मिल ही गयी

बस थोडा ये हुआ

वो हमें नज़रसे नहीं अँगुलियोंके स्पर्श थे देख रही ....

दिल को एहसास ना स्पर्श का गुलाम है ना नज़र का

दिल की धड़कन पनपते प्यार की गवाह होती है ...

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