21 अक्टूबर 2009

बह गई थी वो रात

कुछ बुझे हुए दिए की जली हुई लौ थी ,

पठाखोंकी जली हुई बारूदकी गंधसे भरी हवाएं थी ,

बिखरे हुए रंगोंसे सजा हुआ था आँगन ,

मिठाईओंके खाली बक्सोंकी जमावट थी ......

दिल तो खुशियोंसे भर गया था बहुत ,

पर बदनमें बहुत सारी थकावट थी .....

हाँ ये सारी निशानियाँ गुजरी हुई दीवालीकी रातों की थी .....

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