9 अगस्त 2009

डर र र र र र र ..........

डर ..........!!!!
ये अनुभूति सर्वस्वीकृतिसे एक नकारात्मक अनुभूति ही कही जा सकेगी ..बस आज ये डर पर डरते डरते कुछ लिखने को दिल कर रहा है ......
मिलने पर बिछड़ने का डर , एक्जाममें फ़ैल हो जाने का डर , बारिशके कीचड़में कपड़े गंदे होने का डर , किसीसे मिलने का डर , दोस्ती टूट जाने का डर ,हमारी धन सम्पति कम हो जाने का डर ...एक लम्बी लिस्ट तैयार कर लेते है ...कई चीजें इसमें बिल्कुल कोमन मिलेगी हर व्यक्तिकी लिस्ट में ...
अब ये सोचते है की जिस बातका हमें डर था उसमेंसे कितनी बात है जो सच साबित हुई है ??? लगभग इस का जवाब भी कोमन होगा की लगभग ८० प्रतिशत सच साबित नहीं हुई है .....फ़िर हम ये काल्पनिक डरसे पीड़ित क्यों है ????
ये एक हकीकत है की जब हम डर के जज्बातसे गुजर रहे होते है तब उस पल में जो खुशी मिलती है उसे भी पूरी तरहसे समेत नहीं पाते है ...फ़िर भी डर हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है इसे हम झुठला नहीं सकते ।

मेरे विचारसे हमें जीने का एक मकसद चाहिए होता है ...और दूसरा हमें हर वक्त किसी का साथ भी चाहिए होता है ...डरते है हम ख़ुद के अकेलेपन से ही ....हम समाजकी स्वीकृति हर हाल में चाहते है हमारे हर कार्य में ...इसी लिए हमारा मन कभी कोई ऐसी बात करना चाहे जो समाज के लिहाज से ठीक ना हो तो हम ये डर से नहीं करते की कोई देखेगा तो क्या कहेगा ????मसलन हमें कभी घरमें जोर जोर से गाना गाने का मन करता है ....या फ़िर एक अनजान व्यक्तिसे दो पल हंसकर बात करने को दिल करता है ...चुपचाप अपने प्रेमी या प्रेमिका को मिलने का दिल करता है ... हम भले ये सोचते है की हर व्यक्ति हमें देख रहा है ....पर किसीको हमारे उस कार्य को देखने की फुर्सत नहीं होती और हम उस खुशीसे वंचित रह जाते है ....

लेकिन आज का मेरा विचार है अकेलेपन का डर ....हम घरमें ,ऑफिस में ,स्कुल में ,किसी अनजान रह पर ,अजनबी शहरमें अकेले होने पर क्यों डरते है ? क्योंकि अकेलेपनमें मानसिक तौर पर भी हम अकेले होते है ..तब बिना आयने को देखे हमारे ख़ुद की शख्शियत हमारे सामने उभर आती है ...और मैं दावे के साथ कहती हूँ की प्रेमीजनोंको छोडे तो उसमे हमारी गलतियाँ , हमारे जीवन के बुरे पल , दुःख , सारी नकारात्मक बातें एक फ़िल्म की तरह हमारे सामने होती है ...हमने किसीको ठगा हो तो वो चीज़ उसे भले पता न हो पर हमें जरूर याद रह जाती है ...क्योंकि उस वक्त हम और हमारी अंतरात्मा आमने सामने आ जाते है .....हमारी आत्मा हमें हमेशा ग़लत करनेसे रोकती है ...हमारी गलतियाँ बताती है ...और हम इसी पल से डरते है ...और इसे घर बना लेने देते है ...क्यों हम ऐसा करते है ???ये ही तो वक्त होता है जब हम अपने किए पर शर्मिंदा महसूस हो सकते है ...हमारी गलती सुधार कर एक अच्छे इंसान बन सकते है ....समाज नहीं सुधरता पर अगर एक एक करके इसी तरह इंसान अपनी बुराई से उबरता रहे तो अपने आप पुरा समाज सुधर सकता है .....
अपने अकेलेपन से दोस्ती कर लीजिये ..सच बहुत ही मजा आएगा जीने का ....मैं ऐसा करती हूँ ...मुझे अकेलेमें रहना अच्छा लगता है ....अपने जीवन के सारे सुखद पल याद करके खुश हो जाती हूँ ...पुराने गाने बेसुरे आवाज में खुल कर गा लेती हूँ .....कभी अकेले ही सड़क पर साइकिल लेकर निकल जाओ ...जहन में प्यारा गाना गुनगुनाओ ...एक प्यारे से बच्चे से हँसते हुए बात कर लो ....या फ़िर घरके विडियो पर बिल्कुल अकेले ही एक भुत प्रेत की फ़िल्म देखो ...सचमुच इतना मज़ा आएगा .........और फ़िर ये काल्पनिक डर से आप दूर होने लगोगे ...क्योंकि ऐसे डर से उबरने के आसान रस्ते भी आपको इसी तन्हाई में नजर आने लगेंगे ......

ये पोस्ट आपको पसंद नहीं आई तो ????फ़िर एक डर ......हा ....हा ....हा ....हा ....हा .......

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