17 अगस्त 2009

नाखुदा ....

हम इंसान है ये हम भूल गये थे ,

हर खता तुमसे हुई हम माफ़ करे चले थे ,

अब ये गम तेरे प्यारमें पल रहा ,

ना मैं इंसान रह चला ना खुदा बन सका ...

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कश्ती साहिल पर इंतज़ार कर रही थी नाखुदा का ,

हवा के तेज झोंकेने सदा सुनी उसकी ,

और फ़िर क्या हुआ ...!!!!

लहरों पर बहाकर उसे नए सरजमींके सैर पर ले चला ....

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