12 अगस्त 2009

बाकी है कुछ ....

डायरीके पन्नेमें सूखे गुलाबकी पत्तियां देख लो ,

देखो अभी उसमें भी खुशबू बाकी है ....

सूखे पत्ते लेकर सहला लो हथेलीमें घडी दो घडी ,

पिछले बसंतकी बहारकी नमीं अभी बाकी है ......

भूल गए आप मुझे ये कहकर शिकवा ना किया करो ,

यादोंके मंज़रको टटोलकर देख लो ,

कभी लिखा होगा मेरा नाम उस पर भी तुमने

स्याही शायद फ़ैल गयी है पाती पर

बिखरे है अल्फाज़ भी पर मेरे नाम का निशाँ बाकी है ........

क्यों और कैसे कह गए तुम ?

की कोरे ही कोरे रह गए हो तुम ?

अभी तो इब्तदा हुई है हमारे प्यारकी

जुदाई के इन लम्होंमें हमारा प्यार और परवान चढ़ना बाकी है ...........

2 टिप्‍पणियां:

  1. बिखरे है अल्फाज़ भी पर मेरे नाम का निशाँ बाकी है ........

    क्यों और कैसे कह गए तुम ?

    की कोरे ही कोरे रह गए हो तुम ?

    waah aaj tho dil ki baat keh gayi kalam,yahi sawal na jane kitni baar pucha hai,jawab hi nahi aaya magar...bhawanao ko koi gar lafz mein dhal sakta hai tho bas preeti hai na.bahut badhai,sunder

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