चुपचाप लंबे रस्ते पर हमकदम बनकर चलते रहे एक शाम ,
रुके थोडी सी देर के लिए एक मिलके पत्थर पर बैठे ,
एक शब्द ना उन्होंने कहा था , हम भी चुप्पी साधे चलते रहे थे ,
पर फ़िर भी ये लग रहा शायद बहुत सारी बातें हो गई थी ......
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उनकी दांतमें ऊँगली दबाने की अदा जैसे बातें कर गई ,
उनकी जुकी हुई पलकें शर्मो हयासे हमें कायल कर गई ,
बढ़ते बढ़ते रुक जाते थे जो कदम उनके साथसे मचल गई ,
उनके रुखसार पर आ कर अटक गई जुल्फ हमें घायल कर गई .........
क्या कहें ? क्या ना कहे ? क्या कोई जरूरत लगी उसकी ....
हमारे बीच थी जो खामोशी वही बातें करती रही ,सन्नाटे को चीर गई .........
खामोशियों की जुबान क्या खूब पढ़ी आपने ..प्रीती जी..लिखती rahein ...
जवाब देंहटाएंwaah.........khamoshi ki baat sirf khamoshi hi samajhti hai..........shayad isiliye bina kahe bhi baat hoti hai.
जवाब देंहटाएंअत्यन्त सुन्दर भावनाएं
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1. चाँद, बादल और शाम
2. विज्ञान । HASH OUT SCIENCE