12 मई 2009

अय हवा सुन जरा ....

हवा तू है इक शरारत ,
हवा एक चूभन, तू एक सीलन ,
मुझे छू छूकर बह चली तू कहाँ ????
तेरे परों पर आई है मेरे दर पर उनकी खुश्बू....
इन हवाको मुठ्ठीमें कैद तो कर लू जरा ....
साँसोंमें भर तुम्हे हवा उनका रुखसार चूम लूँ जरा
ठहर जा बस एक पल के लिए ......
भीनी सी खुशबू कभी ,कभी कांपती सिहरन तू ..
तपिश कभी झुलसाती हुई अगन सी ,
ठंडी पुरवाईसी सिरहाने बैठ सहलाती यूँ रातोंमें ,
कानोमे एक दिलकश नगमेसी गुनगुनाती सरसराहट तुम ...
तेरे कानोंमें एक पयगाम जो दिया हमने ले उसे ,
बस उनके कानोंके पास से गुजर जाना ,
चेहरे पर बनकर एक हंसी उनके ,
मेरे जज्बातको कह जाना ..........

2 टिप्‍पणियां:

  1. तेरे कानोंमें एक पयगाम जो दिया हमने ले उसे ,
    बस उनके कानोंके पास से गुजर जाना ,
    चेहरे पर बनकर एक हंसी उनके ,
    मेरे जज्बातको कह जाना ..........
    bahut hi sunder ehsaas ki anubhuti huyi,preeti ye rachana aapke sab se khubsurat rachanao mein se ek hai.

    जवाब देंहटाएं
  2. bahut hi badhiya ahsaas..........paigam aise bhi diya ja sakta hai.....bahut badhiya.

    जवाब देंहटाएं

विशिष्ट पोस्ट

मैं यशोमी हूँ बस यशोमी ...!!!!!

आज एक ऐसी कहानी प्रस्तुत करने जा रही हूँ जो लिखना मेरे लिए अपने आपको ही चेलेंज बन गया था । चाह कर के भी मैं एक रोमांटिक कहानी लिख नहीं पायी ...