11 मई 2009

एक कश्मकश ....

जहाँ पर नज़र रूकती है रुख तेरे आशियाने का है ,

आँखें मूंदते है मगर दीदार तेरे ख़यालमें होते है ,

इसे इश्क का आलम समज़नेकी गुस्ताखी करे कैसे ?

दिल टूट जानेके अंजामसे डरते है ...........

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एक बार आपके दिल पर इख्तियार आ जाने दो ,

मुझे अपने दिलसे भी इसकी इजाज़त मांगने दो ,

कितनी साँसे बाकी है अब उसका तो पता नहीं हमें ,

जुदाई लिखी तक़दीरने फिरभी अपनी आखरी साँस पर इश्क कर लेने दो .......

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